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"ओवरकोट / समीर बरन नन्दी" के अवतरणों में अंतर

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01:40, 17 मई 2011 के समय का अवतरण

लो, घी से खाली कटोरा-से हाथ --
यह ओवरकोट लो,
जब खेतो की पहरेदारी करना
इसे पहनना --
इसमे तुम्हारा दुबलाना छुप जाएगा ।

हो सकता है तुम्हे अपने हट्टे-कट्टे दिन याद आ जाएँ
और निश्चय ही
कोट के सामने के भाग को मिलाते हुए
तुम्हें अपने होठो पर
कोई मुस्की याद आ जाए
बेचने वाली ने इसके रंग की
तारीफ़ की थी --
कहा था टिकाऊ होगा
मै सोच रहा था -- इसमें तुम्हारी आँखो से टपका
पानी टिक नहीं सकता
यह मेड इन यूएसए है ।
(रिपोर्ट है इससे सस्ता कोट इस देश में नहीं मिलता )

मै जानता हूँ पिता
तुम्हारी आभावग्रस्त उम्र का हाड़ काँप रहा होगा
और ऐसा ही कोट आजकल लोग पहन रहे है
वहाँ की उतरन से
ढक रहे है देश के आम लोग कम्पन ।
ये दिल्ली बाज़ार की उपलब्धि है ।
इसकी जेबे बड़ी हैं ।
हो सकता है पिता
इसमे तुम्हारे खाली हाथ छुप जाए....।