"काळ / रावत सारस्वत" के अवतरणों में अंतर
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>कुण कैवै काळ पड़ग्यो! कठै है काळ तिसाई धरती रै ताळवै चिप्योड़ा …) |
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | <poem>कुण कैवै काळ पड़ग्यो! | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=रावत सारस्वत | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | [[Category:मूल राजस्थानी भाषा]] | ||
+ | {{KKCatKavita}}<poem>कुण कैवै काळ पड़ग्यो! | ||
कठै है काळ | कठै है काळ | ||
तिसाई धरती रै ताळवै चिप्योड़ा | तिसाई धरती रै ताळवै चिप्योड़ा |
05:13, 19 मई 2011 का अवतरण
कुण कैवै काळ पड़ग्यो!
कठै है काळ
तिसाई धरती रै ताळवै चिप्योड़ा
बळबळती बाळू सूं भूंज्योड़ा
फूस री टापर्यां अर झूंपां रा
उजड़्योड़ा गांवां अर ढाणियां रा
ऐ निरभागिया जीव
क्यूं जलम लियो इण खोड़ में!
कायर हा, बुजदिल हा, बेवकूफ हा
आं रा पुरखा
जिका इण निरभागी धरती में,
लुक’र प्राण बचाया!
लूंठा हा, वीर हा, सायर हा वै
जिका माळ री धरती नैं दाबी राखी
अर देसनिकाळो दियो बां नाजोगां नैं
तनतोड़ मैनत कर भी
जिका दो जूण टुकड़ा नीं तोड़ पाया
गधां री ज्यूं लद-लद भी
जिका टेम पर दाणां री जगां लातां खाई
बांरै खातर धरती रा सुख कोनी सिरज्योड़ा
भाग री भ्रगु-संहिता में
बांरी कुंडळी नैं जगां कोनी!
ऐ अंजन रा कूआ, ऐ दाखां रा बाग
ऐ गरणाटा टैक्टर, ऐ कोसां लग खेत
ऐ छळछळती नहरां, ऐ कमतरिया चाकर
ऐ फारम, ऐ जीपां, आ दारू, आ चोधर
सुख रा ऐ साधन बांरा कियां हो सकै!
बीजळी सूं गरमायोड़ा
बीजळी सूं ठण्डायोड़ा
बीजळी सूं चमकायोड़ा
बीजळी ज्यूं पळपळाता
ऐ आलीसान बंगला!
बांरा कियां हो सकै!
ऐ कुन्नण ज्यूं दमकती, चन्नण ज्यूं महकती
नागकुंडाळा सा केसां रा जूड़ा सजावती
चोलीदार ब्लाउजां में
गोरै चीकणै डील रा पळका मारती
टेरालीन में सरसर करती
सरसराती कारां नैं दौड़ाती
ऐ नाजुकड़ी हिरणाखियां
बांरी कियां हो सकै!
धरती रो ओ सुरग बांरो है
जिका भुजबळ रा धणी है
जिका गज रो काळजो अर
मिनख रो मगज राखै
जिकां में हौंसलो है संघर्सा सूं जूझणै रो
अर सामरथ है घिरतै बखत सूं
बांथां भर लड़णै री........