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"बक्सों में यादें / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
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पीटा था | पीटा था | ||
मैल कट गया पर ये न कटीं | मैल कट गया पर ये न कटीं | ||
− | यह और अन्दर चलीं | + | यह और अन्दर चलीं गईं |
हम ने निर्मम होकर इन्हें उतार दिया | हम ने निर्मम होकर इन्हें उतार दिया | ||
इन्होंने कुछ नहीं कहा | इन्होंने कुछ नहीं कहा | ||
पर हर बार | पर हर बार | ||
− | ये हमारा कुछ अंश ले | + | ये हमारा कुछ अंश ले गईं |
जिसे हम जान न सके | जिसे हम जान न सके | ||
त्वचा से इनका जो सम्बन्ध है वह रक्त तक है | त्वचा से इनका जो सम्बन्ध है वह रक्त तक है | ||
रक्त का सारा उबाल इन्होंने सहा है | रक्त का सारा उबाल इन्होंने सहा है | ||
इन्हें खोलकर देखो | इन्हें खोलकर देखो | ||
− | इन में हमारे | + | इन में हमारे ख़ून की ख़ुशबू ज़रूर होगी |
अभी ये मौन हैं | अभी ये मौन हैं | ||
पर इन की एक एक परत में जो मन छिपा है | पर इन की एक एक परत में जो मन छिपा है | ||
वह हमारे जाने के बाद बोलेगा | वह हमारे जाने के बाद बोलेगा | ||
यादें आदमी के बीत जाने के बाद ही बोलती हैं | यादें आदमी के बीत जाने के बाद ही बोलती हैं | ||
− | बक्सों में बन्द | + | बक्सों में बन्द रहने दो इन्हें |
− | जब पूरी | + | जब पूरी फ़ुर्सत हो तब देखना |
− | इन का वार्तालाप बडा़ | + | इन का वार्तालाप बडा़ ईष्यालु है |
कुछ और नहीं करने देगा | कुछ और नहीं करने देगा | ||
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20:00, 20 मई 2011 के समय का अवतरण
बक्सों में बन्द हैं यादें
हर कपडा़ एक याद है
जिसे तुम्हारे हाथों ने तह किया था
धोबी ने धोते समय इनको रगडा़ था
पीटा था
मैल कट गया पर ये न कटीं
यह और अन्दर चलीं गईं
हम ने निर्मम होकर इन्हें उतार दिया
इन्होंने कुछ नहीं कहा
पर हर बार
ये हमारा कुछ अंश ले गईं
जिसे हम जान न सके
त्वचा से इनका जो सम्बन्ध है वह रक्त तक है
रक्त का सारा उबाल इन्होंने सहा है
इन्हें खोलकर देखो
इन में हमारे ख़ून की ख़ुशबू ज़रूर होगी
अभी ये मौन हैं
पर इन की एक एक परत में जो मन छिपा है
वह हमारे जाने के बाद बोलेगा
यादें आदमी के बीत जाने के बाद ही बोलती हैं
बक्सों में बन्द रहने दो इन्हें
जब पूरी फ़ुर्सत हो तब देखना
इन का वार्तालाप बडा़ ईष्यालु है
कुछ और नहीं करने देगा