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22:15, 20 मई 2011 के समय का अवतरण

तुम्हारा बाह्य सौन्दर्य
बिक रहा है बाज़ार में
जाने कब से

तुमने उठाईं नज़रें
चल पड़ी दुनिया
तुमने गिराईं नज़रें
हो गई साँझ

तुम्हारे बाल, आँखें
चितवन, वक्षों का उभार
चलने में बनने वाला कोण
सब गवाह हैं पुस्तकों में
बहुत प्रयासों के बाद भी
तुम्हारी गहराई तक नहीं
पहुँच पाया पुरुष

कमोबेश एमएमएस के ज़रिए
तुम्हें मापने का षड्यंत्र
रचा जा रहा है
तुम अपनी पुरानी मुद्रा में
आँखों को नीचे झुकाए
मुँह को हाथों से ढँके
दोनों टाँगों को
इस प्रकार रखे कि
कहीं कोई माप न ले
तुम्हारी मज़बूरी
बैठी रहीं

लोग जिन्हें तुम
अपना कहती थीं
सपना कहती थीं
करते रहे सौदे
तुम्हारे सपनों से
अब तुम सी०डी० बन कर
बिक रही हो
बाज़ार में धड़ल्ले से

शायद तुम्हारी माँ
बचपन में मज़बूरीवश
बेचती तुम्हें तो नहीं मिल पाते
हज़ारों से अधिक,

तुम बड़े होने पर बेचती
यदि अपने जिस्म का हर हिस्सा
तो नहीं बिक पाता लाखों से अधिक,

किन्तु तुम्हारी सी०डी० पर
अब तक हो चुका है
व्यापार करोड़ों का

कमाल है कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं हुआ
सभी लगे हैं अब
गहराई नापने में
कृपया इसी मुद्रा में
कुछ दिन और बैठी रहें।