भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आ, अब लौट चलें / धरमराज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरमराज |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> घूमना एक दिनचर्या है …)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:21, 20 मई 2011 के समय का अवतरण

घूमना एक दिनचर्या है
बिटिया के बालहठी प्रश्न
मेरे लिए बन गए हैं
एक दिनचर्या

गांधी चौराहे पर पहुँच
यकायक मेरे पैर ठिठक गए
मैंने गांधीजी की मूर्ति को प्रणाम किया
बिटिया से भी ऐसा ही करने को कहा

उसने न में सिर हिलाया
बहुत कहने के बाद भी
मैं उसे गांधीजी को प्रणाम नहीं करा पाया

वह रोने लगी
और बोली -
ऐसी मूर्तियाँ भूत होती हैं - पापा

यदि ये गांधी हैं तो
चुप क्यों हैं
पापा ! गांधी के बारे में
दीदी बताती हैं
उन्होंने हमें आज़ादी दिलाई
सत्य, अहिंसा के मार्ग पर चलना सिखाया

वे बुतपरस्त तो नहीं थे
फिर हमने उन्हें बुत क्यों बनाया ?