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"अहसासों का चौरा दरका / श्यामनारायण मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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कौन करे दिये-बत्तियां | कौन करे दिये-बत्तियां | ||
− | + | तुमने जो लिखी नहीं | |
− | + | मैंने जो पढ़ी नहीं | |
− | + | आंखों में तैर रहीं चिट्ठियां | |
छाती से | छाती से | ||
सूरज का दग्ध-लाल गोला लुढ़काकर, | सूरज का दग्ध-लाल गोला लुढ़काकर, | ||
अभी अभी बैठा हूं | अभी अभी बैठा हूं | ||
− | + | आंखों के दरवाज़े | |
− | + | पलकें उढ़काकर। | |
भीतर ही भीतर | भीतर ही भीतर | ||
− | + | लगता है कोई | |
− | + | खोद रहा खत्तियां। | |
सुबह-शाम | सुबह-शाम | ||
विष की थैली उलटाकर | विष की थैली उलटाकर | ||
− | + | समय-सांप सरका। | |
नेह-छोह से तुमने | नेह-छोह से तुमने | ||
− | + | लीपा था पोता था, | |
− | + | भीतर अहसासों का चौरा दरका। | |
खेल हैं, खिलौने हैं, | खेल हैं, खिलौने हैं, | ||
− | + | किसके संग करूं कहो | |
− | + | फिर सग्गे-मित्तियां। | |
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15:56, 23 मई 2011 का अवतरण
अहसासों का चौरा दरका
श्यामनारायण मिश्र
कौन करे दिये-बत्तियां
तुमने जो लिखी नहीं
मैंने जो पढ़ी नहीं
आंखों में तैर रहीं चिट्ठियां
छाती से
सूरज का दग्ध-लाल गोला लुढ़काकर,
अभी अभी बैठा हूं
आंखों के दरवाज़े
पलकें उढ़काकर।
भीतर ही भीतर
लगता है कोई
खोद रहा खत्तियां।
सुबह-शाम
विष की थैली उलटाकर
समय-सांप सरका।
नेह-छोह से तुमने
लीपा था पोता था,
भीतर अहसासों का चौरा दरका।
खेल हैं, खिलौने हैं,
किसके संग करूं कहो
फिर सग्गे-मित्तियां।