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"बुढ़ा गईं संतो काकी / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
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भरी जवानी
बुढ़ा गईं संतो काकी
हरखू काका थे बुज़ुर्ग
सारे टोले के
काकी लाईं थीं मैके से
क़िस्से बाँके हरबोले के
काकी भी थीं
तब तो एकदम ही बाँकी
उन्हें मिले थे
पले-पुसे बेटी-बेटे
हरखू काका रोगी थे
बिस्तर पर रहते थे लेटे
सेंदुर के सँग
काकी ने थी चिंताएँ माथे टाँकी
कुछ दिन काकी हँसीं
मोहल्ला हुआ नया
लोग गुणी थे -
कहा सभी ने
नहीं उन्हें कुछ लाज-हया
काकी का चेहरा
गुलाब था - हुआ तभी से वह ख़ाकी