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"लोमड़ी / राकेश प्रियदर्शी" के अवतरणों में अंतर

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हिलाती है गर्दन जब लोमड़ी
 
हिलाती है गर्दन जब लोमड़ी
 
 
हिल जाता है सारा जंगल,
 
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सारे पेड़-पौधे हिलने और कंपकपाने
 
सारे पेड़-पौधे हिलने और कंपकपाने
 
 
लगते हैं और उलझ जाती हैं
 
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झाड़ियां भयभीत हो
 
झाड़ियां भयभीत हो
 
  
 
सोये सिंह के कान खड़े हो जाते हैं,
 
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जितना ज़ोर से गरजता है शेर
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प्रतिफल, उतनी शांति छा जाती है जंगल में
 
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लोमड़ी सिंह के कान में अकसर धीरे से
 
लोमड़ी सिंह के कान में अकसर धीरे से
 
 
फुसफुसाती है, तब निरीह मेमने
 
फुसफुसाती है, तब निरीह मेमने
 
 
और खरगोश की आंखों में मौत का
 
और खरगोश की आंखों में मौत का
 
 
भयानक दृश्य नाच जाता है
 
भयानक दृश्य नाच जाता है
 
  
 
जंगल का राजा सिंह निरीह प्राणियों को
 
जंगल का राजा सिंह निरीह प्राणियों को
 
 
खाता नहीं, आंख दिखाकर छोड़ देता है,
 
खाता नहीं, आंख दिखाकर छोड़ देता है,
 
 
लोमड़ी धीरे-धीरे उसे चट कर जाती है,
 
लोमड़ी धीरे-धीरे उसे चट कर जाती है,
 
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सिंह से ख़तरा नहीं है जंगलवासी को,
सिंह से खतरा नहीं है जंगलवासी को,
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ख़तरा है उन्हें शातिर लोमड़ियों से,
 
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क्योंकि उनकी आंखों में मायावी प्रेम झलकता है
 
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जब भी निरीह प्राणी, निर्विकार उसके
 
जब भी निरीह प्राणी, निर्विकार उसके
 
 
पास जाता है, लोमड़ी चुपके से अपने
 
पास जाता है, लोमड़ी चुपके से अपने
 
 
लम्बे नाखून उसकी पीठ में घुसेड़ देती है,
 
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निरीह प्राणी जख़्म खाकर, घुटकर,  
निरीह प्राणी जख्म खाकर, घुटकर, आंसू
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आंसू पीकर सब सह जाता है
 
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वह सिंह से शिकायत नहीं करता
 
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उसे जंगल से निकाले जाने का डर हो जाता है
 
उसे जंगल से निकाले जाने का डर हो जाता है
 
 
लोमड़ी अपनी धूर्तता के जाल में उलझाकर
 
लोमड़ी अपनी धूर्तता के जाल में उलझाकर
 
 
निरीह प्राणियों के दौड़ने की क्षमता को
 
निरीह प्राणियों के दौड़ने की क्षमता को
 
 
खुरचकर पस्तहाल कर जाती है
 
खुरचकर पस्तहाल कर जाती है
 
  
 
लोमड़ी के चेहरे पर साधुता का ढोंग
 
लोमड़ी के चेहरे पर साधुता का ढोंग
 
 
स्पष्ट झलकता है,
 
स्पष्ट झलकता है,
 
 
लोमड़ी कभी-कभी फीकी मुस्कान मुस्काती है,
 
लोमड़ी कभी-कभी फीकी मुस्कान मुस्काती है,
 
 
सिंह तो एक मोहरा है,
 
सिंह तो एक मोहरा है,
 
 
जंगल का राज लोमड़ियों से चलता है</poem>
 
जंगल का राज लोमड़ियों से चलता है</poem>

21:12, 24 मई 2011 के समय का अवतरण


हिलाती है गर्दन जब लोमड़ी
हिल जाता है सारा जंगल,
सारे पेड़-पौधे हिलने और कंपकपाने
लगते हैं और उलझ जाती हैं
झाड़ियां भयभीत हो

सोये सिंह के कान खड़े हो जाते हैं,
जितना ज़ोर से गरजता है शेर
प्रतिफल, उतनी शांति छा जाती है जंगल में

लोमड़ी सिंह के कान में अकसर धीरे से
फुसफुसाती है, तब निरीह मेमने
और खरगोश की आंखों में मौत का
भयानक दृश्य नाच जाता है

जंगल का राजा सिंह निरीह प्राणियों को
खाता नहीं, आंख दिखाकर छोड़ देता है,
लोमड़ी धीरे-धीरे उसे चट कर जाती है,
सिंह से ख़तरा नहीं है जंगलवासी को,
ख़तरा है उन्हें शातिर लोमड़ियों से,
क्योंकि उनकी आंखों में मायावी प्रेम झलकता है

जब भी निरीह प्राणी, निर्विकार उसके
पास जाता है, लोमड़ी चुपके से अपने
लम्बे नाखून उसकी पीठ में घुसेड़ देती है,
निरीह प्राणी जख़्म खाकर, घुटकर,
आंसू पीकर सब सह जाता है
वह सिंह से शिकायत नहीं करता

उसे जंगल से निकाले जाने का डर हो जाता है
लोमड़ी अपनी धूर्तता के जाल में उलझाकर
निरीह प्राणियों के दौड़ने की क्षमता को
खुरचकर पस्तहाल कर जाती है

लोमड़ी के चेहरे पर साधुता का ढोंग
स्पष्ट झलकता है,
लोमड़ी कभी-कभी फीकी मुस्कान मुस्काती है,
सिंह तो एक मोहरा है,
जंगल का राज लोमड़ियों से चलता है