भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पोखरन-3 / नील कमल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नील कमल |संग्रह=हाथ सुंदर लगते हैं / नील कमल }} {{KKCatKa…)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:41, 10 जून 2011 के समय का अवतरण

युग-पुरूषों की हँसी, युग-बोध से परे है
इनकी नपी तुली-हँसी में
पुरूषोचित अहं बोलता है
पृथ्वी - समुद्र - आकाश की मर्यादा का
इन्हें ज्ञान होता है
इसलिए ये शांति-वार्ता की शर्तें
भंग नहीं करते
ये पाताल-सुरंगो में हँसते हैं ।