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10:53, 10 जून 2011 के समय का अवतरण
जैसे
मेरे सबसे अजीज़ दोस्त की
आँखों में उमड़ते
ढेर सारे प्यार के बीच
बची रहती है मेरे लिए
थोड़ी-सी घृणा
थोड़ा- सा फ़रेब,
जैसे दिन के उजाले में
बचे रहते हैं
अँधेरे कोने,
जैसे फलों की मिठास में
बचा रहता है
थोड़ा-सा नमक,
जैसे नमकीन होठों में
बची रहती है
मिठास,
जैसे सफ़ेद से सफ़ेद कपड़ों मे
बची रहती है मैल
और इन सबके बीच
जाने कैसे बची रह जाती है
दोस्ती, आख़िरकार ।