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बड़ी हसीन है सपनों की रात, चुप भी रहो / गुलाब खंडेलवाल
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20:35, 24 जून 2011
घड़ी-घड़ी में वही एक बात! चुप भी रहो
ये हमने माना
की
कि
दुनिया न रही वह दुनिया
बचे हैं दोस्त अभी पांच-सात, चुप भी रहो
ग़ज़ल न पूरी हुई थी अभी
की
कि
उसने कहा,
'बहुत है, खूब है, ग़ालिब भी मात, चुप भी रहो'
Vibhajhalani
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