भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मीरा नहीं हो तुम / रणजीत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत |संग्रह=प्रतिनिधि कविताएँ / रणजीत }} {{KKCatKavita‎…)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:27, 30 जून 2011 के समय का अवतरण

मीरा नहीं हो तुम
न मैं ही हूँ तुम्हारा गिरिधर लीलाधाम

तुम्हारे ओठ छूकर भी
ज़माने का ज़हर अमृत नहीं होता
न मेरे चाहने भर से ही बनता है
तुम्हारी ओर बढ़ता साँप, शालिग्राम ।

इसलिये तुम ज़हर का प्याला उठा कर
आज राणा के ही होठों से लगाने के लिए जी कड़ा कर लो
और मैं ?

मैं अभी इस साँप का सिर कुचलता हूँ !