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ज़िन्दगी फिर कोई पाते तो और क्या करते! / गुलाब खंडेलवाल
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19:45, 30 जून 2011
हम अपना सर न कटाते तो और क्या करते!
दिल जो टूटा तो हरेक शहर में
खुशबू
ख़ुशबू
फैली
फूल भी हम जो खिलाते तो और क्या करते!
हम ग़ज़ल बनके न आते तो और क्या करते!
पंखडी
पंखड़ी
दिल की कोई चूमने आया था गुलाब!
आप नज़रें न झुकाते तो और क्या करते!
<poem>
Vibhajhalani
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