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<poem>
तलब ग़म की खुशी ख़ुशी से बढ़ गयी है
ये चाहत ज़िन्दगी से बढ़ गयी है
गुलाब! ऐसे भी क्या कम थी ये दुनिया!
मगर रौनक रौनक़ तुम्हीं से बढ़ गयी है
<poem>
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