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भले ही दिल न मिले आँख चार होती रहीं / गुलाब खंडेलवाल
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13:15, 2 जुलाई 2011
चढ़ा था प्यार का कुछ ऐसा रंग आँखों पर
कली
खुद
ख़ुद
अपनी नज़र का शिकार होती रही
कभी गुलाब को देखा न उस तरह से खिला
भले ही बाग़ में रस की फुहार होती रही
<poem>
Vibhajhalani
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