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"हमेशा दूर ही रहते हैं आप, क्या कहिए / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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कभी तो यह न हुआ आके दो घड़ी मिल जायँ | कभी तो यह न हुआ आके दो घड़ी मिल जायँ | ||
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पड़ी थी नींव ही आँसू की धार पर जिनकी | पड़ी थी नींव ही आँसू की धार पर जिनकी | ||
− | महल वे | + | महल वे काँच के ढहते हैं आप, क्या कहिए! |
कहा कि अब न सहेंगे तो हँसके बोल उठे | कहा कि अब न सहेंगे तो हँसके बोल उठे | ||
− | 'सही है, | + | 'सही है, ख़ूब है, सहते हैं आप, क्या कहिए!' |
रहें जो चुप तो वे देते हैं छेड़, 'चुप क्यों हैं!' | रहें जो चुप तो वे देते हैं छेड़, 'चुप क्यों हैं!' |
19:33, 2 जुलाई 2011 का अवतरण
हमेशा दूर ही रहते हैं आप, क्या कहिए!
हमें भी आप जो कहते हैं-- 'आप', क्या कहिए!
हमारी याद कब आयी कि जब हमीं न रहे
सुरों में प्यार के बहते हैं आप, क्या कहिए!
कभी तो यह न हुआ आके दो घड़ी मिल जायँ
ख़बर ही पूछते रहते हैं आप, क्या कहिए!
पड़ी थी नींव ही आँसू की धार पर जिनकी
महल वे काँच के ढहते हैं आप, क्या कहिए!
कहा कि अब न सहेंगे तो हँसके बोल उठे
'सही है, ख़ूब है, सहते हैं आप, क्या कहिए!'
रहें जो चुप तो वे देते हैं छेड़, 'चुप क्यों हैं!'
कहें तो बस यही कहते हैं, 'आप क्या कहिए!'
घड़ी-घड़ी में बदलता है बाग़ क्या-क्या रंग
गुलाब! देखते रहते हैं आप, क्या कहिए!