भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
<td rowspan=2>
 
<td rowspan=2>
 
<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
 
<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : ना तीर न तलवार से मरती है सचाई ('''रचनाकार:''' [[उदयप्रताप सिंह]])</div>
+
<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : सपने में ('''रचनाकार:''' [[डॉ० रणजीत]])</div>
 
</td>
 
</td>
 
</tr>
 
</tr>
 
</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
 
</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
ना तीर न तलवार से मरती है सचाई
+
भई गुड्डन, यह कौन सा तरीका हुआ
जितना दबाओ उतना उभरती है सचाई
+
जब तुम्हें मेरे पास रहना नहीं है
 +
तो मेरा पीछा छोड़ो
 +
क्यों नाहक मुझे परेशान करती रहती हो
  
ऊँची उड़ान भर भी ले कुछ देर को फ़रेब
+
आना हो तो आओ पूरी तरह से
आख़िर में उसके पंख कतरती है सचाई
+
नहीं तो वहीं रहो मजे में
 +
यह क्या बात हुई
 +
कि दिन-दहाड़े सबके सामने तो कहो
 +
कि मम्मी के पास ही रहना है मुझे
 +
और रातों में चुपचाप चली आओ यहाँ
 +
और फिर यह तो भई हद है
 +
जानबूझ कर दुःखी करने की बात है
 +
कि भटकता रहूँ मैं सारी रात तुम्हारे साथ
 +
स्मृतियां और संभावनाओं के बियाबानों में
 +
और सवेरा होते-होते अदृश्य हो जाओ तुम
 +
बिना कुछ कहे सुने
  
बनता है लोह जिस तरह फ़ौलाद उस तरह
+
पापा को इस तरह नहीं सताते, बेटे
शोलों के बीच में से गुज़रती है सचाई 
+
अब बार-बार तुम्हें ढूँढ़ने की
 
+
उनकी हिम्मत नहीं है । 
सर पर उसे बैठाते हैं जन्नत के फ़रिश्ते
+
ऊपर से जिसके दिल में उतरती है सचाई
+
 
+
जो धूल में मिल जाय, वज़ाहिर, तो इक रोज़
+
बाग़े-बहार  बन  के  सँवरती  है  सचाई 
+
 
+
रावण की बुद्धि, बल से न जो काम हो सके
+
वो राम की मुस्कान से करती है सचाई
+
 
</pre></center></div>
 
</pre></center></div>

21:15, 2 जुलाई 2011 का अवतरण

Lotus-48x48.png
सप्ताह की कविता
शीर्षक : सपने में (रचनाकार: डॉ० रणजीत)
भई गुड्डन, यह कौन सा तरीका हुआ
जब तुम्हें मेरे पास रहना नहीं है
तो मेरा पीछा छोड़ो
क्यों नाहक मुझे परेशान करती रहती हो

आना हो तो आओ पूरी तरह से
नहीं तो वहीं रहो मजे में
यह क्या बात हुई
कि दिन-दहाड़े सबके सामने तो कहो
कि मम्मी के पास ही रहना है मुझे
और रातों में चुपचाप चली आओ यहाँ
और फिर यह तो भई हद है
जानबूझ कर दुःखी करने की बात है
कि भटकता रहूँ मैं सारी रात तुम्हारे साथ
स्मृतियां और संभावनाओं के बियाबानों में
और सवेरा होते-होते अदृश्य हो जाओ तुम
बिना कुछ कहे सुने

पापा को इस तरह नहीं सताते, बेटे
अब बार-बार तुम्हें ढूँढ़ने की
उनकी हिम्मत नहीं है ।