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सारी दुनिया पे कहर ढा देना / गुलाब खंडेलवाल
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16:13, 2 जुलाई 2011
सारी दुनिया पे कहर ढा देना
खूब
ख़ूब
था तेरा मुस्कुरा देना
सैंकडों छेद हैं इसमें मालिक!
आख़िरी वक्त देख तो लें गुलाब
रुख
रुख़
से परदा ज़रा हटा देना
<poem>
Vibhajhalani
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