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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुलाब खंडेलवाल
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[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
अपनी बेताबी से उनको बेख़बर समझे हैं हम
फिर भी कुछ है प्यार का उनपर असर, समझे हैं हम
 
ये तड़पती चितवनें, ये धड़कनें दिल की उदास
कोई समझे या नहीं समझे, मगर समझे हैं हम
 
दो घड़ी रोना-कलपना, दो घड़ी मस्ती के रंग
आपकी आँखों का इनको खेल भर समझे हैं हम
 
देखकर भी हमको होठों पर हँसी आयी नहीं
आज कुछ बदली हुई है वह नज़र, समझे हैं हम
 
तोड़ ले जाएगा कोई तुझको दम भर में गुलाब!
प्यार के ये रंग होंगे बेअसर, समझे हैं हम
 
<poem>
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