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ज़िन्दगी फिर कोई पाते तो और क्या करते! / गुलाब खंडेलवाल
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22:31, 3 जुलाई 2011
फूल भी हम जो खिलाते तो और क्या करते!
उनकी नज़रों से छिपाकर
उन्हीं से
उन्हींसे
मिलना था
हम ग़ज़ल बनके न आते तो और क्या करते!
Vibhajhalani
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