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<poem>
कहाँ पर पे हमको उम्मीदों ने लाके छोड़ दिया
अँधेरी रात में दीपक जलाके छोड़ दिया
उसी को सजते रहे हैं हम अपनी ग़ज़लों में
था जिसने साथ बहाना बना के बनाके छोड़ दिया
फिर उस तरह से कभी चाँदनी सँवर न सकी
किसी ने किसीने दो घड़ी मन में बसा के बसाके छोड़ दिया
अभी तो हमने लगाया था डायरी को हाथ
लजाते देख उन्हें मुस्कुरा के मुस्कुराके छोड़ दिया
छलकता और ही उनपर है आज प्यार का रंग
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