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तुझसे लड़ जाय नज़र हमने ये कब चाहा था! / गुलाब खंडेलवाल
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21:37, 6 जुलाई 2011
हो तेरी गोद में सर, हमने ये कब चाहा था!
यों तो मंज़िल पे पहुँचने की
खुशी
ख़ुशी
है, ऐ दोस्त!
ख़त्म हो जाय सफ़र, हमने ये कब चाहा था!
Vibhajhalani
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