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यों ख़यालों में उभरता है एक हसीन-सा नाम / गुलाब खंडेलवाल
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22:01, 6 जुलाई 2011
कोई मंज़िल है मिली गुमरही में भी हमको
यों तो दुनिया
कि
की
निगाहों में हम रहे नाक़ाम
इस तरह गोद में काँटों की सो रहे हैं गुलाब
Vibhajhalani
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