भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चिड़चिड़ी हवाएँ / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=आहत हैं वन / कुमार रवींद्…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:01, 11 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
दिया-बुझे
रोज़ रात आती हैं
चिड़चिड़ी हवाएँ
आँगन के पीपल पर बैठ
वे झगड़ती हैं
सोए दरवाज़े से
बार-बार लड़ती हैं
उठा-पटक करती हैं
घर भर में
ये सिड़ी हवाएँ
काँपते कैलेण्डर के
दिन सभी बदलती हैं
पिछली तारीख़ों पर
बैठ नहीं टलती हैं
कुदक-कुदक फिरती हैं
कमरे में
ये चिड़ी हवाएँ
अँधी हैं - बहरी हैं
शोर बहुत करती हैं
नींद से जगाती हैं
साँस में उतरती हैं
पर दिन के आते ही
हो जाती हैं
तिड़ी हवाएँ