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वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको
मौला ये बता दे मुझेमुझको, मेरा दिल क्यूँ दिल ये सुलगता है
सूरज में जलन है गर, क्यूँ चाँद पिघलता है
साँसों के भी चलने से, लगता है बुरा हमको
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको
सोचा कि मना लूँ उन्हें, मिन्नत भी कई चलो कर लूँ मैं कदमों में गिर जाऊं, बाहों में उन्हें भर लूँ होगा ये नही लेकिन, आसां जो था लगा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको
गिरते हुए कदमों की, आहट पर न जाना तुम
मर जाएँगे हम यूँ ही, मत अश्क़ बहाना तुम आँसू ये तेरे तुम्हारे अब भी, लगते हैं सज़ा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको</poem>
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