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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
 
<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : अदावत दिल में रखते हैं ('''रचनाकार:''' [[वीरेन्द्र खरे 'अकेला' ]])</div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : आदिवासी ('''रचनाकार:''' [[अनुज लुगुन ]])</div>
 
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अदावत दिल में रखते हैं मगर यारी दिखाते हैं
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वे जो सुविधाभोगी हैं
न जाने लोग भी क्या क्या अदाकारी दिखाते हैं
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या मौक़ा परस्त हैं
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या जिन्हें आरक्षण चाहिए
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कहते हैं हम आदिवासी हैं,
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वे जो वोट चाहते हैं
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कहते हैं तुम आदिवासी हो,
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वे जो धर्म प्रचारक हैं
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कहते हैं
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तुम आदिवासी जंगली हो ।
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वे जिनकी मानसिकता यह है
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कि हम ही आदि निवासी हैं
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कहते हैं तुम वनवासी हो,
  
यक़ीनन उनका जी भरने लगा है मेज़बानी से
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और वे जो नंगे पैर
वो कुछ दिन से हमें जाती हुई लारी दिखाते हैं
+
चुपचाप चले जाते हैं जंगली पगडंडियों में
 
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कभी नहीं कहते कि
उलझना है हमें बंजर ज़मीनों की हक़ीक़त से
+
हम आदिवासी हैं
उन्हें क्या, वो तो बस काग़ज़ पे फुलवारी दिखाते हैं
+
वे जानते हैं जंगली जड़ी-बूटियों से
 
+
अपना इलाज करना
मदद करने से पहले तुम हक़ीक़त भी परख लेना
+
वे जानते हैं जंतुओं की हरकतों से
यहाँ पर आदतन कुछ लोग लाचारी दिखाते हैं
+
मौसम का मिजाज समझना
 
+
सारे पेड़-पौधे, पर्वत-पहाड़
डराना चाहते हैं वो हमें भी धमकियाँ देकर
+
नदी-झरने जानते हैं
बड़े नादान हैं पानी को चिन्गारी दिखाते हैं
+
कि वे कौन हैं
 
+
दरख़्तों की हिफ़ाज़त करने वालो डर नहीं जाना
+
दिखाने दो, अगर कुछ सरफिरे आरी दिखाते हैं
+
 
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हिमाक़त क़ाबिले-तारीफ़ है उनकी ‘अकेला’जी
+
हमीं से काम है हमको ही रंगदारी दिखाते हैं
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13:02, 14 जुलाई 2011 का अवतरण

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सप्ताह की कविता
शीर्षक : आदिवासी (रचनाकार: अनुज लुगुन )
वे जो सुविधाभोगी हैं
या मौक़ा परस्त हैं
या जिन्हें आरक्षण चाहिए
कहते हैं हम आदिवासी हैं,
वे जो वोट चाहते हैं
कहते हैं तुम आदिवासी हो,
वे जो धर्म प्रचारक हैं
कहते हैं
तुम आदिवासी जंगली हो ।
वे जिनकी मानसिकता यह है
कि हम ही आदि निवासी हैं
कहते हैं तुम वनवासी हो,

और वे जो नंगे पैर
चुपचाप चले जाते हैं जंगली पगडंडियों में
कभी नहीं कहते कि
हम आदिवासी हैं
वे जानते हैं जंगली जड़ी-बूटियों से
अपना इलाज करना
वे जानते हैं जंतुओं की हरकतों से
मौसम का मिजाज समझना
सारे पेड़-पौधे, पर्वत-पहाड़
नदी-झरने जानते हैं
कि वे कौन हैं ।