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"राग के आवृत में / नंदकिशोर आचार्य" के अवतरणों में अंतर

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कैसा दुर्निवार खिंचाव
 
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आह माँ, माँ आह
 
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13:49, 21 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


काली रात के तारों पर
बजती हुई
घनीभूत धुन है तुम्हारी
देह:
मीड़ो-मुरकियों की झूल
में उन्मन
खिंचा जाता हूँ
समाने राग के आवृत में।


मृत्यु से भी अधिक
कैसा दुर्निवार खिंचाव
आह माँ, माँ आह
(1980)