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कभी ग्रामपथ पर गति-मंथर
चित्रकूट में फटिक शिला पर
देखी कभी लजायी
 
'उसने कंचन-मृग भी माँगा
क्यों मैं धनुष-बाण ले भागा!
क्या था उसका दोष कि त्यागा!'
सोच विकलता छायी
 
'क्या यदि राज्य भारत को देता!
साथ प्रिया के मैं हो लेता
लंका से तो फिरा विजेता
हार अवध में खायी'
रात-भर प्रभु को नींद न आयी
फिर-फिर सीता की मोहक छवि नयनों में लहरायी
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