गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
ज़माने भर की निगाहों से टालकर लाये / गुलाब खंडेलवाल
10 bytes added
,
17:31, 12 अगस्त 2011
यहाँ थे लोग भी क्या-क्या सवाल कर लाये!
वही हैं आप, वही हम
हैं
, वही हैं प्याले भी
नया कुछ और उन आँखों से ढालकर लाये
Vibhajhalani
2,913
edits