"मादाम / साहिर लुधियानवी" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=साहिर लुधियानवी }} आप बेवजह परेशान-सी क्यों हैं मादाम? ...) |
|||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होँगे | लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होँगे | ||
− | मेरे | + | मेरे अहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी |
− | मेरे | + | मेरे माहौल में इन्सान न रहते होँगे |
पंक्ति 30: | पंक्ति 30: | ||
लोग कहते हैं - मगर आप अभी तक चुप हैं | लोग कहते हैं - मगर आप अभी तक चुप हैं | ||
− | आप भी | + | आप भी कहिए ग़रीबो में शराफ़त कैसी |
− | नेक मादाम! बहुत जल्द वो दौर आयेगा | + | नेक मादाम ! बहुत जल्द वो दौर आयेगा |
जब हमें ज़िस्त के अदवार परखने होंगे | जब हमें ज़िस्त के अदवार परखने होंगे | ||
पंक्ति 44: | पंक्ति 44: | ||
− | + | हम ने हर दौर में तज़लील सही है लेकिन | |
− | + | हम ने हर दौर के चेहरे को ज़िआ बक़्शी है | |
− | + | हम ने हर दौर में मेहनत के सितम झेले हैं | |
− | + | हम ने हर दौर के हाथों को हिना बक़्शी है | |
पंक्ति 60: | पंक्ति 60: | ||
मेरे एहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी | मेरे एहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी | ||
− | मेरे | + | मेरे माहौल में इन्सान न रहते होँगे |
+ | |||
+ | |||
+ | वजह बेरंगी-ए-गुलज़ार कहूँ या न कहूँ | ||
+ | |||
+ | कौन है कितना गुनहगार कहूँ या न कहूँ | ||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
+ | जिला=प्रकाश; लताफ़त=रुसवाई; तज़लील= अनादर करना; ज़िया=प्रकाश; तल्ख़=कड़वी; मुबाहिस=विवाद |
03:09, 24 नवम्बर 2007 का अवतरण
आप बेवजह परेशान-सी क्यों हैं मादाम?
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होँगे
मेरे अहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी
मेरे माहौल में इन्सान न रहते होँगे
नूर-ए-सरमाया से है रू-ए-तमद्दुन की जिला
हम जहाँ हैं वहाँ तहज़ीब नहीं पल सकती
मुफ़लिसी हिस्स-ए-लताफ़त को मिटा देती है
भूख आदाब के साँचे में नहीं ढल सकती
लोग कहते हैं तो, लोगों पे ताज्जुब कैसा
सच तो कहते हैं कि, नादारों की इज़्ज़त कैसी
लोग कहते हैं - मगर आप अभी तक चुप हैं
आप भी कहिए ग़रीबो में शराफ़त कैसी
नेक मादाम ! बहुत जल्द वो दौर आयेगा
जब हमें ज़िस्त के अदवार परखने होंगे
अपनी ज़िल्लत की क़सम, आपकी अज़मत की क़सम
हमको ताज़ीम के मे'आर परखने होंगे
हम ने हर दौर में तज़लील सही है लेकिन
हम ने हर दौर के चेहरे को ज़िआ बक़्शी है
हम ने हर दौर में मेहनत के सितम झेले हैं
हम ने हर दौर के हाथों को हिना बक़्शी है
लेकिन इन तल्ख मुबाहिस से भला क्या हासिल?
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होँगे
मेरे एहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी
मेरे माहौल में इन्सान न रहते होँगे
वजह बेरंगी-ए-गुलज़ार कहूँ या न कहूँ
कौन है कितना गुनहगार कहूँ या न कहूँ
जिला=प्रकाश; लताफ़त=रुसवाई; तज़लील= अनादर करना; ज़िया=प्रकाश; तल्ख़=कड़वी; मुबाहिस=विवाद