भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इतिहास में / नवनीत पाण्डे" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>इतिहास में सब- कुछ दर्ज़ है सब- कुछ अथार्त् सभी-कुछ नहीं है तो सि…) |
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=नवनीत पाण्डे | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem>इतिहास में सब- कुछ दर्ज़ है | <poem>इतिहास में सब- कुछ दर्ज़ है | ||
सब- कुछ | सब- कुछ |
04:34, 28 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
इतिहास में सब- कुछ दर्ज़ है
सब- कुछ
अथार्त् सभी-कुछ
नहीं है तो सिर्फ़ वह
जिससे बनता है इतिहास
अपने पुरखों, गांव, शहर, देश या
स्वयं अपना इतिहास
जो हुआ विशेष
बन गया पाठ्यक्रम का हिस्सा
पढ़ाया जाता है संशोधन कर बार- बार स्कूलों, कॉलेजों की
पाठ्य- पुस्तकों में
जो विशेषाविषशेष हैं
बन गए हैं महत्त्वाकांक्षाओं, स्वार्थों के
प्रचारी- प्रसारी बैनर
सेंक रहे हैं तमगों की रोटियां
बैठा कर अपनी-अपनी गोटियों के कमीषन
हम ही शिकारी हम ही शिकार
हम सरकारी हमारी सरकार
हमें हासिल सारे अधिकार
इतिहास से बाहर
सब-कुछ बेकार