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आईना / रेशमा हिंगोरानी
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08:17, 2 अक्टूबर 2011
शम’अ, आईना लिए घूम रहा है कोई,
चलूं, अपना मुझे दीदार हो न जाए कहीं!
-रेशमा हिंगोरानी
</poem>
Reshma
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