"आदमी यहीं कहीं है / प्रमोद कौंसवाल" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल जनविजय |संग्रह=रूपिन-सूपिन / प्रमोद कौंसवाल }} आँख...) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=प्रमोद कौंसवाल |
|संग्रह=रूपिन-सूपिन / प्रमोद कौंसवाल | |संग्रह=रूपिन-सूपिन / प्रमोद कौंसवाल | ||
}} | }} | ||
− | + | <poem> | |
आँख खुलती है | आँख खुलती है | ||
− | |||
और दिन ताज़गी लिए प्रगट हो जाता है | और दिन ताज़गी लिए प्रगट हो जाता है | ||
− | |||
जैसे बाँसुरी पर रुपक ताल | जैसे बाँसुरी पर रुपक ताल | ||
− | |||
स्तुति और अध्यात्म का पाठ | स्तुति और अध्यात्म का पाठ | ||
− | |||
इस वक़्त न पढ़ाओ | इस वक़्त न पढ़ाओ | ||
− | |||
चौरसिया कह गए | चौरसिया कह गए | ||
− | |||
कोई नेत्रहीन कहे नहीं देखी गोधूलि | कोई नेत्रहीन कहे नहीं देखी गोधूलि | ||
− | |||
तो वह बाँसुरी पर रूपक ताल में | तो वह बाँसुरी पर रूपक ताल में | ||
− | |||
सुनाएंगे बिलंबित | सुनाएंगे बिलंबित | ||
− | |||
राज ने भी बजाई है बाँसुरी | राज ने भी बजाई है बाँसुरी | ||
− | |||
शून्य में जहाँ आदमी | शून्य में जहाँ आदमी | ||
− | |||
खोया पाता है अपने को आसपास | खोया पाता है अपने को आसपास | ||
− | |||
वह फूँक से निकली और कैनवस पर दिखी | वह फूँक से निकली और कैनवस पर दिखी | ||
− | |||
साइकिलें बेंच चटाई दीवारें | साइकिलें बेंच चटाई दीवारें | ||
− | |||
कुहासा कौए मोमबत्तियाँ | कुहासा कौए मोमबत्तियाँ | ||
− | |||
दरवाज़े खिड़की और देहरी | दरवाज़े खिड़की और देहरी | ||
− | |||
वास्तुकारों ज़रा यहाँ से हटो | वास्तुकारों ज़रा यहाँ से हटो | ||
− | |||
नकार हाशिए से भी बाहर एक आकार है | नकार हाशिए से भी बाहर एक आकार है | ||
− | |||
आपने उसे राजस्थान के क़िलों में गढ़ा | आपने उसे राजस्थान के क़िलों में गढ़ा | ||
− | |||
लेकिन राज जैसा आदमी तो क़िले के भीतर | लेकिन राज जैसा आदमी तो क़िले के भीतर | ||
− | |||
मौजूद है पहले से | मौजूद है पहले से | ||
− | |||
उसे देखने के लिए चाहिए | उसे देखने के लिए चाहिए | ||
− | |||
नज़रिया जो देखे | नज़रिया जो देखे | ||
− | |||
कुछ जोड़कर कुछ घटाकर | कुछ जोड़कर कुछ घटाकर | ||
− | |||
जैसे खाली बेंच पर | जैसे खाली बेंच पर | ||
− | |||
कोने में आकर कौन बैठ गया | कोने में आकर कौन बैठ गया | ||
− | |||
कौन सुनसान दीवारों को | कौन सुनसान दीवारों को | ||
− | |||
पढ़ने के लिए टिकाए हुए है पीठ | पढ़ने के लिए टिकाए हुए है पीठ | ||
− | |||
आसपास कभी-कभार लांघ देती हैं | आसपास कभी-कभार लांघ देती हैं | ||
− | |||
बच्चों की पतंगें | बच्चों की पतंगें | ||
− | |||
सुरैया गिलसरा परिमल हज़ारा | सुरैया गिलसरा परिमल हज़ारा | ||
− | |||
ख़रबूजा और कृष्णा छाप | ख़रबूजा और कृष्णा छाप | ||
− | |||
इनकी उड़ान है | इनकी उड़ान है | ||
− | |||
हमारे सपनों की संवाहक | हमारे सपनों की संवाहक | ||
− | |||
वंसत आ गया | वंसत आ गया | ||
− | |||
पीला और हल्क़ा लाल है रंग | पीला और हल्क़ा लाल है रंग | ||
− | |||
शहर इन्हें देख जाग गया | शहर इन्हें देख जाग गया | ||
− | |||
तबला बजाने वाले | तबला बजाने वाले | ||
− | |||
युगल वादक | युगल वादक | ||
− | |||
बाहर गली के नुक्कड़ पर आए हैं | बाहर गली के नुक्कड़ पर आए हैं | ||
− | |||
जहाँ कहीं भी हो कठपुतलियो | जहाँ कहीं भी हो कठपुतलियो | ||
− | |||
सुनो और नाचो | सुनो और नाचो | ||
− | |||
ब्रह्ममांड की व्युत्पति ही नहीं | ब्रह्ममांड की व्युत्पति ही नहीं | ||
− | |||
एक ऐसा शून्य और ख़ालीपन है जिसमें आप | एक ऐसा शून्य और ख़ालीपन है जिसमें आप | ||
− | |||
आकार गढ़ सकते हैं | आकार गढ़ सकते हैं | ||
− | |||
आदमी औरत पशु | आदमी औरत पशु | ||
− | |||
और मनुष्य जगत की | और मनुष्य जगत की | ||
− | |||
सारी की सारी विज़ुअल रियलिटी | सारी की सारी विज़ुअल रियलिटी | ||
− | |||
हेनरी मातम ने दी है | हेनरी मातम ने दी है | ||
− | |||
लाइनों की आज़ादी | लाइनों की आज़ादी | ||
− | |||
और रंगों का मेल | और रंगों का मेल | ||
− | |||
काँच के टुकड़ों पर | काँच के टुकड़ों पर | ||
− | |||
बन रहे हैं कैनवस। | बन रहे हैं कैनवस। | ||
+ | </poem> |
09:29, 25 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण
आँख खुलती है
और दिन ताज़गी लिए प्रगट हो जाता है
जैसे बाँसुरी पर रुपक ताल
स्तुति और अध्यात्म का पाठ
इस वक़्त न पढ़ाओ
चौरसिया कह गए
कोई नेत्रहीन कहे नहीं देखी गोधूलि
तो वह बाँसुरी पर रूपक ताल में
सुनाएंगे बिलंबित
राज ने भी बजाई है बाँसुरी
शून्य में जहाँ आदमी
खोया पाता है अपने को आसपास
वह फूँक से निकली और कैनवस पर दिखी
साइकिलें बेंच चटाई दीवारें
कुहासा कौए मोमबत्तियाँ
दरवाज़े खिड़की और देहरी
वास्तुकारों ज़रा यहाँ से हटो
नकार हाशिए से भी बाहर एक आकार है
आपने उसे राजस्थान के क़िलों में गढ़ा
लेकिन राज जैसा आदमी तो क़िले के भीतर
मौजूद है पहले से
उसे देखने के लिए चाहिए
नज़रिया जो देखे
कुछ जोड़कर कुछ घटाकर
जैसे खाली बेंच पर
कोने में आकर कौन बैठ गया
कौन सुनसान दीवारों को
पढ़ने के लिए टिकाए हुए है पीठ
आसपास कभी-कभार लांघ देती हैं
बच्चों की पतंगें
सुरैया गिलसरा परिमल हज़ारा
ख़रबूजा और कृष्णा छाप
इनकी उड़ान है
हमारे सपनों की संवाहक
वंसत आ गया
पीला और हल्क़ा लाल है रंग
शहर इन्हें देख जाग गया
तबला बजाने वाले
युगल वादक
बाहर गली के नुक्कड़ पर आए हैं
जहाँ कहीं भी हो कठपुतलियो
सुनो और नाचो
ब्रह्ममांड की व्युत्पति ही नहीं
एक ऐसा शून्य और ख़ालीपन है जिसमें आप
आकार गढ़ सकते हैं
आदमी औरत पशु
और मनुष्य जगत की
सारी की सारी विज़ुअल रियलिटी
हेनरी मातम ने दी है
लाइनों की आज़ादी
और रंगों का मेल
काँच के टुकड़ों पर
बन रहे हैं कैनवस।