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"शरद के बादल / पंकज सिंह" के अवतरणों में अंतर

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23:44, 5 अगस्त 2008 का अवतरण

फिर सताने आ गए हैं

शरद के बादल


धूप हल्की-सी बनी है स्वप्न

क्यों भला ये आ गए हैं

यों सताने

शरद के बादल


धैर्य धरती का परखने

और सूखी हड्डियों में कंप भरने

हवाओं की तेज़ छुरियाँ लपलपाते

आ गए हैं

शरद के बादल


(रचनाकाल : 1966)