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"एक दीगर मार / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
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11:51, 13 दिसम्बर 2011 का अवतरण
सह रहा हूँ
एक दीगर मार...
क़ैदख़ाने के झरोखे से
वही तो कह रहा हूँ
दीखते...
मुस्तैद पहरेदार,
कंठीदार तोते,
टूटते लाचार खोखे
कुछ न पूछो
किस तरह से दह रहा हूँ
सह रहा हूँ
चन्द बुलडोजर
सड़क की पीठ पर तैनात,
हाँफती-सी, काँपती-सी,
आदमी की जात
उफ़ !
क़लम होते हुए
पाबन्दियों में रह रहा हूँ
कह रहा हूँ...