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खुल गई नाव / अज्ञेय
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09:29, 17 दिसम्बर 2011
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<Poem>
:
खुल गई नाव
घिर आई संझा, सूरज
:
डूबा सागर-तीरे।
धुंधले पड़ते से जल-पंछी
भर धीरज से
:
मूक लगे मंडराने,
सूना तारा उगा
चमक कर
:
साथी लगा बुलाने।
तब फिर सिहरी हवा
तब फिर मूर्छित
व्यथा विदा की
:
जागी धीरे-धीरे।
</poem>
अनिल जनविजय
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