Changes

खुल गई नाव / अज्ञेय

33 bytes added, 09:29, 17 दिसम्बर 2011
{{KKCatGeet}}
<Poem>
: खुल गई नाव
घिर आई संझा, सूरज
: डूबा सागर-तीरे।
धुंधले पड़ते से जल-पंछी
भर धीरज से
: मूक लगे मंडराने,
सूना तारा उगा
चमक कर
: साथी लगा बुलाने।
तब फिर सिहरी हवा
तब फिर मूर्छित
व्यथा विदा की
: जागी धीरे-धीरे।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,235
edits