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"चाँद की आदतें / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर
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नीम की सूखी टहनियों से लटककर | नीम की सूखी टहनियों से लटककर | ||
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बहुत उम्दा है | बहुत उम्दा है | ||
कि मस्जिद की मीनारों और गुंबद की पिछाड़ी से | कि मस्जिद की मीनारों और गुंबद की पिछाड़ी से | ||
− | ज़रा मुड़िया उठाकर मुँह बिराता है हमें! | + | ज़रा मुड़िया उठाकर मुँह बिराता है हमें ! |
− | यह चाँद! | + | यह चाँद ! |
− | इसकी आदतें कब ठीक होंगी? | + | इसकी आदतें कब ठीक होंगी ? |
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20:58, 17 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
चाँद की
कुछ आदतें हैं।
एक तो वह पूर्णिमा के दिन
बड़ा-सा निकल आता है
बड़ा नकली (असल शायद वही हो) ।
दूसरी यह,
नीम की सूखी टहनियों से लटककर
टँगा रहता है (अजब चिमगादड़ी आदत !)
तथा यह तीसरी भी
बहुत उम्दा है
कि मस्जिद की मीनारों और गुंबद की पिछाड़ी से
ज़रा मुड़िया उठाकर मुँह बिराता है हमें !
यह चाँद !
इसकी आदतें कब ठीक होंगी ?