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हे जगदीश देव, मन मेरा-
सत्य सनातन धर्म न छोड़े।
सुख में तुझ को भूल न जावे, नेक न संकट में घबरावे,
धीर कहाय अधीर न होवे, तमक न तार क्षमा का तोड़े।
त्याग जीव के जीवन पथ को, टेढ़ा हांक न दे तन-रथ को,
अति चंचल इन्द्रिय-घोड़ों की, भ्रम से उलटी बाग न मोड़े।
होकर शुद्ध महाव्रत धारे, मलिन किसी का माल न मारे,
धार घमण्ड क्रोध-पाहन से, हा न प्रेम-रस का घट फोड़े।
ऊँचे विमल विचार चढ़ावे, तप से प्रातिभ ज्ञान बढ़ावे,
हठ तज मान करे विद्या का, ‘शंकर’ श्रुति का सार निचोड़े।