भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गजेन्द्र मोक्ष / नाथूराम शर्मा 'शंकर'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नाथूराम शर्मा 'शंकर' }} {{KKCatPad}} <poem> वाह ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:48, 29 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

वाह सतगुरु, वाह सतगुरु, वाह सतगुरु वाह !
माह मारग में डरो-सो, फिरत व्याकुल बाबरो-सो,
काल-केहरि को सतायो जीव-कुंजर-नाह-
भूलो बोध-वन की राह।
आधि-आतप न रोक पाई, योनि-सरिता-तीर आयो,
जन्म, जीवन, मरण जा में, अमित आप अथाह-
आवागमन प्रबल प्रवाह।
आस-प्यास न रोक पाई, घुस परो धारा मझाई,
द्वन्द्व दल-दल माहिं जूझो, कर्म-बन्धन ग्राह-
कर आखेट को उत्साह।
करि कियो बलहीन अरिने, आपके उपदेश-हरिन,
धाय धरि छिन में छुड़ायो, मेट दारुण दाह-
‘शंकर’ कछु न राखी चाह।