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"लफ़्जों की रोशनी / मख़्मूर सईदी" के अवतरणों में अंतर
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ज़मीं को रौशनी तो बाँटता है | ज़मीं को रौशनी तो बाँटता है |
01:19, 31 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
वो मेरा है, मगर मेरा नहीं है
उफ़क़ पर जगमगाता इक सितारा
ज़मीं को रौशनी तो बाँटता है
उतरता है कब आँगन में किसी के
इक बन के लेकिन गाहे-गाहे
टपक पड़ता है दामन में किसी के
मैं उसका हूँ मगर उससे जुदा हूँ
गुज़रती शब के सन्नाटे में तन्हा
बचश्मे-नम भटकता फिर रहा हूँ