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− | ‘‘सपनों की दुनिया में जीते.जीते उन्हीं को कब कागज़ पर लिखना शुरू कर दिया पता ही न चलाए सपने जब धरातल से मिले और उनका रूप बदलता चला गया । और दुनिया से मिले अनुभव भी मेरी गज़लों का हिस्सा बन गए । धीरे.धीरे साहित्य में रूचि बढ़ती चली गयीए जितना पढ़ाए उतनी ही प्यास बढ़ी और ये सफ़र अब तक निरंतर चल रहा है शुरू.शुरू में मेरे पास किताबें न होने के कारण मैं अंतरजाल पर ही किसी शायर ध् कवि को पढ़ने की कोशिश करती मगर उपलब्ध सामग्री इतनी कम होती कि किसी भी शायर को पढ़े जाने का एहसास तक न | + | ‘‘सपनों की दुनिया में जीते.जीते उन्हीं को कब कागज़ पर लिखना शुरू कर दिया पता ही न चलाए सपने जब धरातल से मिले और उनका रूप बदलता चला गया । और दुनिया से मिले अनुभव भी मेरी गज़लों का हिस्सा बन गए । धीरे.धीरे साहित्य में रूचि बढ़ती चली गयीए जितना पढ़ाए उतनी ही प्यास बढ़ी और ये सफ़र अब तक निरंतर चल रहा है शुरू.शुरू में मेरे पास किताबें न होने के कारण मैं अंतरजाल पर ही किसी शायर ध् कवि को पढ़ने की कोशिश करती मगर उपलब्ध सामग्री इतनी कम होती कि किसी भी शायर को पढ़े जाने का एहसास तक न होता इसीलिए जब मेरे पास कुछ अच्छी किताबें आई तो मुझसे रुका न गया और आप सबके पढ़ने के लिए उन्हें कविताकोश में जोड़ना शुरू कर दिया ।’’ |
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[http://yogdankarta.blogspot.com/2011/07/blog-post.html#more कविताकोश योगदानकर्ता मंच ] से साभार--[[सदस्य:Dr. ashok shukla|Dr. ashok shukla]] 00:13, 1 जनवरी 2012 (CST) | [http://yogdankarta.blogspot.com/2011/07/blog-post.html#more कविताकोश योगदानकर्ता मंच ] से साभार--[[सदस्य:Dr. ashok shukla|Dr. ashok shukla]] 00:13, 1 जनवरी 2012 (CST) |
11:47, 1 जनवरी 2012 का अवतरण
दुनिया से मिले अनुभवों को गज़लों का हिस्सा बनाती कवियत्री श्रद्धा जैन
आलेख:
आज हम परिचित करा रहे हैं कविताकोश के ऐसे सशक्त योगदानकर्ता से जिसने अब तक कविताकोश में 2850 छोटे बड़े योगदान दिये हैं । इस सदस्य की रचनाएँ कविता कोश में संकलित हैं। जिसकी रचनाओं को 2011 का कविता कोश सम्मान 2011 भी मिला है तथा आप कविता कोश टीम मे सचिव के रूप में शामिल है ।
श्रद्धा जैन जी विदिशा मध्यप्रदेश में 8 नवंबर 1977 को पैदा हुयी और शैशिक रूप् से रसायन विज्ञान मे स्नात्तकोत्तर करने के बाद संप्रति सिंगापुर में हिंदी अध्यापिका हैं ।
अपनी रचना धर्मितो के लिये इनका कहना है कि:-
‘‘सपनों की दुनिया में जीते.जीते उन्हीं को कब कागज़ पर लिखना शुरू कर दिया पता ही न चलाए सपने जब धरातल से मिले और उनका रूप बदलता चला गया । और दुनिया से मिले अनुभव भी मेरी गज़लों का हिस्सा बन गए । धीरे.धीरे साहित्य में रूचि बढ़ती चली गयीए जितना पढ़ाए उतनी ही प्यास बढ़ी और ये सफ़र अब तक निरंतर चल रहा है शुरू.शुरू में मेरे पास किताबें न होने के कारण मैं अंतरजाल पर ही किसी शायर ध् कवि को पढ़ने की कोशिश करती मगर उपलब्ध सामग्री इतनी कम होती कि किसी भी शायर को पढ़े जाने का एहसास तक न होता इसीलिए जब मेरे पास कुछ अच्छी किताबें आई तो मुझसे रुका न गया और आप सबके पढ़ने के लिए उन्हें कविताकोश में जोड़ना शुरू कर दिया ।’’
कविताकोश योगदानकर्ता मंच से साभार--Dr. ashok shukla 00:13, 1 जनवरी 2012 (CST)