भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हुबाब-ए-हस्ती / रेशमा हिंगोरानी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:47, 30 जनवरी 2012 के समय का अवतरण
आँख बादल की
छलक जाए
फ़लक पर
जब भी,
एक पानी की ही
चादर सी
ओढ़ लें सब ही,
कभी धीमे से बरसतीं,
कभी तेज़ी से गिरें,
नहीं पीते कभी देखा,
मगर मचलती फिरें!
नाचती हैं,
वो पत्तियों पे
थिरकती बूँदें,
और फ़िसलें कभी,
तो सीधे
ज़मीं पर उतरें,
प्यास उनकी बुझे,
जब हस्ती मिटाएँ अपनी,
देख मँज़र यही,
फिर अश्क बहाए बदली!
04.08.93