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"तोड़े नयी जमीन/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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जोड़े सकल समाज हृदय में | जोड़े सकल समाज हृदय में | ||
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कोमल दूब उगे, | कोमल दूब उगे, | ||
दुख, चिन्ता, भय जीत समय पर | दुख, चिन्ता, भय जीत समय पर |
19:48, 28 फ़रवरी 2012 का अवतरण
आओ हम सब मिल आपस में
एक करें यह काम,
अंधियारे के माथे पर लिख दें
सूरज का नाम
तोड़ें नयी ज़मीन न ऊसर
बंजर एक बचे,
प्रगति वधू अपने हाथों में
मेंहदी रोज़ रचे,
कर्मयज्ञ के हवन कुंड़ में
आहुति दे अविराम ।
तोड़ें दंभ इन्द्र का मिलकर
सबकी प्यास हरें ।
द्वेष, घृणा, कुंठा, पीड़ा, का
दिन-दिन हृास करें ।
धरती, अम्बर, पर्वत, घाटी
सबको कर अभिराम ।
जोड़े सकल समाज हृदय में
सबके प्रेम जगे,
पथरीली चट्टानों पर भी
कोमल दूब उगे,
दुख, चिन्ता, भय जीत समय पर
अपनी कसें लगाम ।
अंधियारे के माथे पर लिख दें
सूरज का नाम ।