"हिन्दी साहित्य में स्थान बनाती जापानी विधाऐं" के अवतरणों में अंतर
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08:58, 4 मार्च 2012 का अवतरण
हिंदी कविता को यह कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जापानी तोहफा है।
विषय सूची
नवीनतम विधा है हाइकू
यह सर्वमान्य तथ्य है कि हिन्दी साहित्य और भारतीय कला जगत रचनात्मकता के लिये सीमा के किसी बंधन को नहीं मानता । भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही प्रवासियों द्वारा कला के विभिन्न स्वरूपों को आत्मसात किया गया है। हिन्दी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में से एक नवीनतम विधा है हाइकू । हाँलांकि यह विधा लगभग एक शताब्दी पूर्व सन् 1919 में कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर के द्वारा अपनी जापान यात्रा से लौटने के पश्चात उनके ‘जापान यात्री’ में प्रसिद्ध जापानी हाइकू कवि बाशो की हाइकू कविताओं के बंगला कविताओं के अनुवाद के रूप में सर्वप्रथम हिन्दुस्तानी धरती पर अवतरित हुयी परन्तु इतने पहले आने के बावजूद लंबे समय तक यह साहित्यिक विधा हिन्दुस्तानी साहित्यिक जगत में अपनी कोई विशेष पहचान नहीं बना सकी। वर्तमान में संसार भर में फैले हिंदुस्तानियों की इन्टरनेट पर फैली रचनाओं के माध्यम से यह विधा हिन्दुस्तानी कविता जगत में प्रमुखता से अपना स्थान बना रही है।
इस विधा का काब्य अनुशासन
इस जापानी विधा को हिन्दी काब्य जगत के अनुशासन से परिचित कराते हुये डॉ0 जगदीश ब्योम ने बताया है:- हाइकु सत्रह (17) अक्षर में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में 5 अक्षर दूसरी में 7 अक्षर और तीसरी में 5 अक्षर रहते हैं। संयुक्त अक्षर को एक अक्षर गिना जाता है, जैसे (सुगन्ध) शब्द में तीन अक्षर हैं-(सु-1, ग-1, न्ध्-1)। तीनों वाक्य अलग-अलग होने चाहिए। अर्थात् एक ही वाक्य को 5,7,5 के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियाँ हों।
अनेक हाइकुकार एक ही वाक्य को 5-7-5 वर्ण क्रम में तोड़कर कुछ भी लिख देते हैं और उसे हाइकु कहने लगते हैं। यह सरासर गलत है, और हाइकु के नाम पर स्वयं को छलावे में रखना मात्र है। हाइकु कविता में 5-7-5 का अनुशासन तो रखना ही है, क्योंकि यह नियम शिथिल कर देने से छन्द की दृष्टि से अराजकता की स्थिति आ जाएगी। इस संबंध में श्रीयुत ब्योम जी का मानना है कि हिन्दी अपनी बात कहने के लिये अनेक प्रकार के छंदों का प्रचलन है अतः उर्पयुक्त अनुशासन से भिन्न प्रकार से लिखी गयी पंक्तियों को हाइकू न कहकर मुक्त छंद अथवा क्षणिका ही कहना चाहिये। वास्तव में हाइकू का मूल स्वरूप कम शब्दों में ‘घाव करें गंभीर ’ की कहावत को चरितार्थ करना ही है। अतः शब्दों के अनुशासन से इतर लिखी गयी रचना को हाइकू कहकर संबोधित करना उसके मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड ही कही जायेगी। प्रकृति के भावप्रणय चित्रण हेतु हाइकू एक सशक्त विधा है यथा-
(1)
धूप जांचती
ऋतुओं की शाला में
जाड़े की कापी।
- डॉ० पूर्णिमा वर्मन
(2)
धूप ने उसे
हौले से सहलाया
बर्फ पिघली
- अनूप भार्गव,
शोध् कार्य
मूलतः इस जापानी साहित्य की विधा हाइकू पर श्री करुणेश भट्ट ने लखनऊ विश्वविद्यालय में शोध् कार्य भी किया है। हिन्दी में हाइकु को गम्भीरता के साथ लेने वालों और हाइकुकारों की सूची में- प्रोफेसर सत्यभूषण वर्मा , कमलेश भट्ट 'कमल' , डॉ० भगवत शरण अग्रवाल ,प्रो० आदित्य प्रताप सिंह , डॉ० जगदीश व्योम यथा डॉ० रामनारायण पटेल ‘राम’अशोक कुमार शुक्ला रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' आदि नाम प्रमुख नाम है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हाइकू
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन्टेरनेट के माध्यम से हाइकू लिखने वालों में डॉ0 भावना कुँअर, प्रदीप मैथानी, सिंगापुर , -डॉ0 सुदर्शन प्रियदर्शिनी, यू.एस.ए. , सारिका सक्सेना, यू.एस.ए. , जैनन प्रसाद, फिजी , शकुन्तला तलवार, यू.एस.ए. , प्रो० अश्विन गाँधी, अमेरिका , हरिहर झा, आस्ट्रेलिया , अनूप भार्गव, यू.एस.ए. , डॉ० पूर्णिमा वर्मन, संयुक्त अरब अमीरात , आदि नाम प्रमुख नाम है।