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"क़िस्सा मिरे जुनूँ का बहुत याद आएगा / शहरयार" के अवतरणों में अंतर
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जब-जब कोई चिराग हवा में जलाएगा | जब-जब कोई चिराग हवा में जलाएगा |
23:03, 16 मार्च 2012 का अवतरण
क़िस्सा मिरे जुनूँ का बहुत याद आएगा
जब-जब कोई चिराग हवा में जलाएगा
रातों को जागते हैं,इसी वास्ते कि ख्वाब
देखेगा बंद आँखें तो फिर लौट जाएगा
कब से बचा के रक्खी है इक बूँद ओस की
किस रोज़ तू वफ़ा को मिरी आज़माएगा
कागज़ की कश्तियाँ भी बड़ी काम आएँगी
जिस दिन हमारे शहर में सैलाब आएगा
दिल को यकीन है कि सर-ए-रहगुज़ार-ए-इश्क
कोई फ़सुर्दा दिल ये ग़ज़ल गुनगुनाएगा