भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बदला अपना लाल / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} <poem> पल-पल शीशा हाथ में …) |
|||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
हाथ में कंघी | हाथ में कंघी | ||
काढ़े अपने बाल | काढ़े अपने बाल | ||
− | बोलो साधो | + | बोलो, साधो |
− | ऐसे कैसे | + | ऐसे कैसे |
− | बदला अपना लाल | + | बदला अपना लाल |
− | कब जगना | + | कब जगना |
कब उसका सोना | कब उसका सोना | ||
पकड़ बैठता | पकड़ बैठता | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
संकेतों में | संकेतों में | ||
पूछा करता | पूछा करता | ||
− | जाने किसका हाल | + | जाने किसका हाल |
कभी भाँग-सी | कभी भाँग-सी | ||
− | + | खाये रहता | |
कुछ पूछो तो | कुछ पूछो तो | ||
कुछ है कहता | कुछ है कहता | ||
− | सीधी- | + | सीधी-सीधी |
पगडंडी पर | पगडंडी पर | ||
डगमग उसकी चाल! | डगमग उसकी चाल! | ||
पंक्ति 32: | पंक्ति 32: | ||
तकली में अब | तकली में अब | ||
लगी रुई है | लगी रुई है | ||
− | + | कात रही है | |
समय सुई है | समय सुई है | ||
− | + | कबिरा-सा | |
− | + | बुनकर बनने में | |
− | + | लगते कितने साल | |
</poem> | </poem> |
13:37, 18 मार्च 2012 के समय का अवतरण
पल-पल शीशा
हाथ में कंघी
काढ़े अपने बाल
बोलो, साधो
ऐसे कैसे
बदला अपना लाल
कब जगना
कब उसका सोना
पकड़ बैठता
छत का कोना
संकेतों में
पूछा करता
जाने किसका हाल
कभी भाँग-सी
खाये रहता
कुछ पूछो तो
कुछ है कहता
सीधी-सीधी
पगडंडी पर
डगमग उसकी चाल!
तकली में अब
लगी रुई है
कात रही है
समय सुई है
कबिरा-सा
बुनकर बनने में
लगते कितने साल