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"बेद-कमल-मुख परसति जननी / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

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माता यशोदा अपने पुत्र श्यामसुन्दरको प्रेमपूर्वक गोदमें लिये हैं और उनके वेदमय(जिससे वेदोंकी उत्पत्ति हुई उस) कमलमुखको (दोनों हाथोंसे) छू रही हैं वहश्रीमुख अत्यन्त सुन्दर है, अरुणाभ है और अत्यन्त कोमल है; स्नेहसे (उसे छूकर माता)आनन्दितहो रही हैं, मानो उनकी समस्त कामनाएँ पूर्ण हो गयीं । उनकी पीठके सहारे सुन्दर बलरामजी उझके हैं, बलराम और श्यामसुन्दर परस्पर एक-दूसरेको देख रहे हैं ।दोनों पुत्र एक-दूसरेको झुककर बार-बार देख रहे हैं । (यह शोभा देखकर) मैया आनन्दमग्न होकर एक प्रहरसे निर्निमेष हो रही है । (पुत्रोंके) स्वरूपको देखकर उसे अपनी कुछ सुधि नहीं रह गयी, उसी समय (दोनोंने मिलकर) माताके गले की माला तोड़ दी ।सूरदासजी कहते हैं कि मेरे स्वामीकी शिशु-लीलाका आनन्द (जिन्हें देखना हो, वे) श्रीनन्दजीके धाम में देख आवें ।
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माता यशोदा अपने पुत्र श्यामसुन्दरको प्रेमपूर्वक गोद में लिये हैं और उनके वेदमय(जिससे वेदों की उत्पत्ति हुई उस) कमलमुख को (दोनों हाथों से) छू रही हैं वह श्री मुख अत्यन्त सुन्दर है, अरुणाभ है और अत्यन्त कोमल है; स्नेह से (उसे छू कर माता)आनन्दित हो रही हैं, मानो उनकी समस्त कामनाएँ पूर्ण हो गयीं । उनकी पीठ के सहारे सुन्दर बलराम जी उझके हैं, बलराम और श्यामसुन्दर परस्पर एक-दूसरे को देख रहे हैं । दोनों पुत्र एक-दूसरे को झुककर बार-बार देख रहे हैं । (यह शोभा देखकर) मैया आनन्द मग्न होकर एक प्रहर से निर्निमेष हो रही है । (पुत्रों के) स्वरूप को देखकर उसे अपनी कुछ सुधि नहीं रह गयी, उसी समय (दोनों ने मिलकर) माता के गले की माला तोड़ दी ।सूरदास जी कहते हैं कि मेरे स्वामी की शिशु-लीला का आनन्द (जिन्हें देखना हो, वे) श्रीनन्द जी के धाम में देख आवें ।

22:49, 28 सितम्बर 2007 का अवतरण

राग आसावरी


बेद-कमल-मुख परसति जननी, अंक लिए सुत रति करि स्याम ।
परम सुभग जु अरुन कोमल-रुचि, आनन्दित मनु पूरन-काम ॥
आलंबित जु पृष्ठ बल सुंदर परसपरहि चितवत हरि-राम ।
झाँकि-उझकि बिहँसत दोऊ सुत, प्रेम-मगन भइ इकटक जाम ॥
देखि सरूप न रही कछू सुधि, तोरे तबहिं कंठ तैं दाम ।
सूरदास प्रभु-सिसु-लीला-रस, आवहु देखि नंद सुख-धाम ॥


माता यशोदा अपने पुत्र श्यामसुन्दरको प्रेमपूर्वक गोद में लिये हैं और उनके वेदमय(जिससे वेदों की उत्पत्ति हुई उस) कमलमुख को (दोनों हाथों से) छू रही हैं वह श्री मुख अत्यन्त सुन्दर है, अरुणाभ है और अत्यन्त कोमल है; स्नेह से (उसे छू कर माता)आनन्दित हो रही हैं, मानो उनकी समस्त कामनाएँ पूर्ण हो गयीं । उनकी पीठ के सहारे सुन्दर बलराम जी उझके हैं, बलराम और श्यामसुन्दर परस्पर एक-दूसरे को देख रहे हैं । दोनों पुत्र एक-दूसरे को झुककर बार-बार देख रहे हैं । (यह शोभा देखकर) मैया आनन्द मग्न होकर एक प्रहर से निर्निमेष हो रही है । (पुत्रों के) स्वरूप को देखकर उसे अपनी कुछ सुधि नहीं रह गयी, उसी समय (दोनों ने मिलकर) माता के गले की माला तोड़ दी ।सूरदास जी कहते हैं कि मेरे स्वामी की शिशु-लीला का आनन्द (जिन्हें देखना हो, वे) श्रीनन्द जी के धाम में देख आवें ।