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जागिये गुपाल लाल! ग्वाल द्वार ठाढ़े ।<br>रैनि-अंधकार गयौ, चंद्रमा मलीन भयौ, <br>तारागन देखियत नहिं तरनि-किरनि बाढ़े ॥<br>मुकुलित भये कमल-जाल, गुंज करत भृंग-माल,<br>प्रफुलित बन पुहुप डाल, कुमुदिनि कुँभिलानी ।<br>गंध्रबगन गान करत, स्नान दान नेम धरत,<br>हरत सकल पाप, बदत बिप्र बेद-बानी ॥<br>बोलत,नँद बार-बार देखैं मुख तुव कुमार,<br>गाइनि भइ बड़ी बार बृंदाबन जैबैं ।<br>जननि कहति उठौ स्याम, जानत जिय रजनि ताम,<br>सूरदास प्रभु कृपाल , तुम कौं कछु खैबैं ॥<br><br>राग सूहौ
भावार्थ :-- जागो; द्वारपर सब गोप (तुम्हारी प्रतीक्षामें ) खड़े हैं माखन बाल गोपालहि भावै । रात्रिका अन्धकार दूर हो गया<br>भूखे छिन न रहत मन मोहन, चंद्रमा मलिन पड़ गयाताहि बदौं जो गहरु लगावै ॥<br>आनि मथानी दह्यौ बिलोवौं, अब तारे नहीं दीख पड़तेजो लगि लालन उठन न पावै ।<br>जागत ही उठि रारि करत है, सूर्य नहिं मानै जौ इंद्र मनावै ॥<br>हौं यह जानति बानि स्याम की किरणें फैल रही हैं, कमलोंके समूह खिल गये, भ्रमरोंका झुंड गुंजार कर रहा है, वनमें पुष्प (वृक्षोंकी) डालियों पर खिल उठे, कुमुदिनी संकुचित हो गयी, गन्धर्वगण गान कर रहे हैं अँखियाँ मीचे बदन चलावै । इस समय स्नान<br>नंद-दान तथा नियमोंका पालन करके अपने सारे पाप दूर करते हुए विप्रगण वेदपाठ कर रहे हैं । श्रीनन्दजी बारसुवन की लगौं बलैया, यह जूठनि कछु सूरज पावै ॥<br><br> भावार्थ :-बार पुकारते - (माता कहती हैं) -`कुमार! उठोमेरे बालगोपाल को मक्खन रुचिकर है ।मन मोहन एक क्षण भी भूखे नहीं रह सकता; इसमें जो देर लगा सके, तुम्हारा मुख तो देखेंउससे मैं होड़ बद सकती हूँ । मथानी लाकर मैं तबतक दही मथ लूँ जब तक कि मेरा लाल जाग न जाय; गायोंको वृन्दावन (चरनेक्योंकि) जाने में बहुत देर हो गयी ।माता कहती हैं - `श्यामसुन्दर उठो उठते ही वह (मक्खनके लिये) मचल जाता है और फिरइन्द्र भी आकर मनावें तो मान नहीं सकता । मैं श्यामका यह स्वभाव जानती हूँ कि वह (आधी नींदमें भी उठकर मक्खन लेकर) नेत्र बंद किये हुए मुँह चलातारहता है । अभी तुम मनमें रात्रिका अन्धकार ही समझ रहे हो? ' सूरदासजी कहते हैं--मेरे कृपालु स्वामी आपको कि मैं श्रीनन्दनन्दनके ऊपर बलिहारी जाता हूँ,उनका यह उच्छिष्ट कुछ भोजन मुझे भी तो करना है (अतः अब उठ जाइये)मिल जाय ।