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चूना / वीरेन डंगवाल

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|संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगवाल
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जहाँ पर पड़ा वहीं पर खिल गया चूना
 
रोनी दीवार पर आहा क्या जगर-मगर कीन्हा ।
 
::::हल्दी के संग लगा चोट पर
 
::::दे दिया मलहम का काम
 
::::कहीं पड़ा अकड़ पान-सुर्ती में तो
 
::::फाड़ डाला सब जीभ-गाल का चाम
 
बना सगुन ब्याह-सादी में
 
नाली तक के गुन गाए
 
भोली डिज़ायनों में भोली आत्माओं के करतब दिखलाए
 
चमकाया
 
अंधकार रह न गया सूना !
</poem>
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