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काम-प्रेम / वीरेन डंगवाल

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|संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगवाल
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काम हृदय में यह कैसा कोहराम मचाए है
 
बँसवट में जैसे चिड़ियों की जोशीली खटपट
 
खिला कहाँ से संध्या में गुलाब पीला
 
आता हुआ शरद यह कैसे रंग दिखाए है
 
प्रेम हृदय में यह कैसा कोहराम मचाए है ।
</poem>
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